१ सालोक्य :- इसमें ऐसे आनंद की अनुभूति होती है जिसमे यह अनुभव किया जाता है कि ' मैं हूँ और परमपुरुष है ' यह ज्ञान तब होता है जब कुलकुण्डलिनी मूलाधार चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र के बीच होती है इस अवस्था में अनुभव करने पर झींगुर की आवाज सुनाई देती है
२ सामीप्य :- इस स्थिति में ' परमपुरुष ' के पास होने का अनुभव होता है और आनंद का बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी स्वाधिष्ठान चक्र से मणिपुर चक्र के बीच होती है इस अवस्था में अनुभव करने पर घंटी की आवाज सुनाई देती है
३ सायुज्य :- इस स्थिति में ' परमपुरुष ' के बिलकुल निकट होने अर्थात उनके चरण या अंग से स्पर्श होने का बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी मणिपुर चक्र से अनाहत चक्र के बीच होती है इस अवस्था में अनुभव करने पर बांसुरी की आवाज सुनाई देती है
४ सारुप्य :- इस स्थिति में ' सिर्फ मैं हूँ और परमपुरुष है दूसरा कोई नहीं ' ऐसा होने का बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी अनाहत चक्र से विशुद्धचक्र के मध्य होती है इस अवस्था में अनुभव करने पर चर्च की घंटी की आवाज सुनाई देती है
५ सृष्टि :- ' मैं ही परमपुरुष हूँ ' इसी बोध को सृष्टि कहते है , ऐसा बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी विशुद्धचक्र से आज्ञाचक्र के मध्य होती है इस अवस्था में ओंकार अर्थात ओउम की आवाज सुनाई देती है
६ कैवल्य :- ' सिर्फ परमपुरुष है ' मन की इस स्थिति को कैवल्य कहते है यही निर्विकल्प की समाधी है , इस अवस्था में कोई आवाज नहीं सुनाई देती , ऐसा बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी आज्ञाचक्र से सहस्रचक्र के मध्य होती है इस अंतिम अवस्था में " मैं " का भाव समाप्त हो जाता है और ब्रहम्त्व का बोध ही सविकल्प समाधी है
४ सारुप्य :- इस स्थिति में ' सिर्फ मैं हूँ और परमपुरुष है दूसरा कोई नहीं ' ऐसा होने का बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी अनाहत चक्र से विशुद्धचक्र के मध्य होती है इस अवस्था में अनुभव करने पर चर्च की घंटी की आवाज सुनाई देती है
५ सृष्टि :- ' मैं ही परमपुरुष हूँ ' इसी बोध को सृष्टि कहते है , ऐसा बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी विशुद्धचक्र से आज्ञाचक्र के मध्य होती है इस अवस्था में ओंकार अर्थात ओउम की आवाज सुनाई देती है
६ कैवल्य :- ' सिर्फ परमपुरुष है ' मन की इस स्थिति को कैवल्य कहते है यही निर्विकल्प की समाधी है , इस अवस्था में कोई आवाज नहीं सुनाई देती , ऐसा बोध तब होता है जब कुलकुण्डलिनी आज्ञाचक्र से सहस्रचक्र के मध्य होती है इस अंतिम अवस्था में " मैं " का भाव समाप्त हो जाता है और ब्रहम्त्व का बोध ही सविकल्प समाधी है
पावन विचार लिए अच्छी जानकारी....
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