आत्मा अरुज है वह कभी रोग से आक्रांत नहीं होती इसका उपयोग रोग निवारण के लिए किया जा सकता है अध्यात्म चिकित्सा का मूल आधार है आत्मा के अरुज स्वाभाव का चिंतन करना और तेजस केंद्र पर इसको ध्यान से केन्द्रित करना
१ मन की चेतना द्वारा इन्द्रियों को नियंत्रित किया जाता है
२ भाव चेतना द्वारा मन और इन्द्रियों का संचालन करना
यह भाव बोध हो कि शरीर बाहरी जगत से दूर है और आत्मा अधिक निकट है अध्यात्म चिकित्सा का मूल भाव ही भाव चिकित्सा है भाव शुद्ध और अशुद्ध दो प्रकार के होते है
अशुद्ध भाव विकृति पैदा करते है और मन को चंचल बनाते है तथा शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम करता है
शुद्ध भाव दिमाग की कार्यप्रणाली को ताकत देते है और मन को एकाग्रता प्रदान करते है तथा प्रतिरोधक शक्ति को ज्यादा ताकतवर बनाते है
भाव चिकित्सा में बाधा डालने वाले तत्व :- क्रोध, अहंकार , कपट, लोभ, वासना, जलन, निंदा और चुगली करना
भाव चिकित्सा के साधक तत्व :- क्षमा, विनम्रता, पवित्रता, संतोष, अभय, करुणा, अहिंसा, सदभावना, दया, ताप, त्याग, मैत्री, निस्वार्थ प्रेमभाव और परगुण दर्शन
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है निरोगी काया निरोगी मन , इस कथन को सार्थक करता है यह श्लोक : 'शरीर माध्यम धर्मं खलु साधनम' अर्थात शरीर को स्वस्थ रखना धर्म का पहला साधन है क्योंकि कोई भी कार्य बिना जप, तप ,योग और भोग के द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता और कार्य सिद्धि चाहे जप, तप के द्वारा किया जाये या योग और भोग के द्वारा की जाये हर परिस्थिति में मन एकाग्र होना चाहिए और मन एकाग्र तभी होगा जब मन स्वस्थ होगा , मन स्वस्थ तभी होगा जब शरीर स्वस्थ होगा
अब हम जान गए कि शरीर का स्वस्थ होना कितना जरूरी है? स्वस्थ मन में ही चेतना जागृत होती है यही निर्मल भाव मनुष्य को अध्यात्म ज्ञान का बोध कराते है और अध्यात्म शिखर तक ले जाने का एकमात्र साधन है
१ मन की चेतना द्वारा इन्द्रियों को नियंत्रित किया जाता है
२ भाव चेतना द्वारा मन और इन्द्रियों का संचालन करना
यह भाव बोध हो कि शरीर बाहरी जगत से दूर है और आत्मा अधिक निकट है अध्यात्म चिकित्सा का मूल भाव ही भाव चिकित्सा है भाव शुद्ध और अशुद्ध दो प्रकार के होते है
अशुद्ध भाव विकृति पैदा करते है और मन को चंचल बनाते है तथा शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम करता है
शुद्ध भाव दिमाग की कार्यप्रणाली को ताकत देते है और मन को एकाग्रता प्रदान करते है तथा प्रतिरोधक शक्ति को ज्यादा ताकतवर बनाते है
भाव चिकित्सा में बाधा डालने वाले तत्व :- क्रोध, अहंकार , कपट, लोभ, वासना, जलन, निंदा और चुगली करना
भाव चिकित्सा के साधक तत्व :- क्षमा, विनम्रता, पवित्रता, संतोष, अभय, करुणा, अहिंसा, सदभावना, दया, ताप, त्याग, मैत्री, निस्वार्थ प्रेमभाव और परगुण दर्शन
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है निरोगी काया निरोगी मन , इस कथन को सार्थक करता है यह श्लोक : 'शरीर माध्यम धर्मं खलु साधनम' अर्थात शरीर को स्वस्थ रखना धर्म का पहला साधन है क्योंकि कोई भी कार्य बिना जप, तप ,योग और भोग के द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता और कार्य सिद्धि चाहे जप, तप के द्वारा किया जाये या योग और भोग के द्वारा की जाये हर परिस्थिति में मन एकाग्र होना चाहिए और मन एकाग्र तभी होगा जब मन स्वस्थ होगा , मन स्वस्थ तभी होगा जब शरीर स्वस्थ होगा
अब हम जान गए कि शरीर का स्वस्थ होना कितना जरूरी है? स्वस्थ मन में ही चेतना जागृत होती है यही निर्मल भाव मनुष्य को अध्यात्म ज्ञान का बोध कराते है और अध्यात्म शिखर तक ले जाने का एकमात्र साधन है
अध्यात्म चिकित्सा के मूल तत्व
१ श्वास और प्राण उर्जा का सम्यक प्रयोग
२ एकाग्रता
३ शरीरप्रेक्षा
४ अनुप्रेक्षा
५ ध्वनि के प्रकम्पन
६ कायोत्सर्ग
७ उपवास
८ रंग चिकित्सा
९ भाव विशुद्धि
श्वास का सम्यक प्रयोग :- श्वास की गति बदलने पर भाव बदल जाता है और आवेश का भाव जागृत होता है तब श्वास की गति तेज हो जाती है जबकि शांति का भाव जागृत होने पर श्वास की गति धीमी हो जाती है श्वास के प्रति जागने वाला व्यक्ति अन्तरंग में उभरने वाले आवेश भाव को बदल सकता है और समाप्त कर सकता है
श्वास का सम्यक प्रयोग :- श्वास की गति बदलने पर भाव बदल जाता है और आवेश का भाव जागृत होता है तब श्वास की गति तेज हो जाती है जबकि शांति का भाव जागृत होने पर श्वास की गति धीमी हो जाती है श्वास के प्रति जागने वाला व्यक्ति अन्तरंग में उभरने वाले आवेश भाव को बदल सकता है और समाप्त कर सकता है
श्वास, भाव और मन की गति के नियम :-
१ ध्यान में श्वास धीमा हो जाता है और श्वास को मंद करे तो ध्यान बन जाता है
२ श्वास एक प्राणशक्ति है प्राणशक्ति चेतना से जुडी है इसलिए श्वास को देखने का अर्थ है श्वास के साथ जुडी प्राणधारा की आधारभूत चेतना का अनुभव करना
३ श्वास को देखने से 'मैं कौन हूँ' यह उलझा हुआ प्रश्न सुलझ जाता है इसके लम्बे अभ्यास से प्राण और चेतना का स्पष्ट अनुभव हो जाता है
४ वास्तव में दीर्ध श्वास ही सहज श्वास है पेट का फूलना और सिकुड़ना ही सहज श्वास है
प्राण उर्जा का सम्यक प्रयोग :- प्राण सूक्ष्म शरीर के बीच का सम्बन्ध सूत्र है प्राण शरीर में पाँच प्रकार से नियत समय पर प्राण धारा का प्रवाह करते है
प्राण प्राण केंद्र प्राण - सम्बन्ध प्राण की स्थिति
प्राण नासाग्र,ह्रदय सूर्य सुबह ३ से ५ ..फेफड़े में
दोप: ११ से १ ..हृदय में
सायं ७ से ९ ..हृदय झिल्ली
अपान गुदा अग्नि सुबह ५ से ७ ..बड़ी आँत
दोप: १ से ५ ..छोटी आँत
रात ११ से १ ..मूत्राशय में
रात १ से ३ ...यकृत में
समान नाभि जल सुबह ५ से ११ ..पेट,तिल्ली,
अग्नाशय
सायं ५ से ७ ..गुर्दा में
रात ८ से ११ ..उत्सर्जन तंत्र
उदान कंठ,ओठ वायु सुबह ३ से ५ ..फेफड़े में
दोप:११ से १ ..ह्रदय में
व्यान त्वचा चंद्रमा रात ९ से ११ ..श्वसन तंत्र में
पाचन और उत्सर्जन तंत्र में
प्राण का सम्बन्ध सूर्य से है , नेत्र में प्राण की अधिक मात्रा से है
अपान का सम्बन्ध अग्नि से है,वाणी में अपान अधिक मात्रा से है
समान का सम्बन्ध जल से है ,मन में समान अधिक मात्रा से है
उदान का सम्बन्ध वायु से है ,ओज में उदान अधिक मात्रा से है
व्यान का सम्बन्ध चंद्रमा से है,कान में व्यान अधिक मात्रा से है
प्राण के प्रवाह :- प्राण के मुख्य तीन प्रवाह है
१ ईडा :- ईडा का सम्बन्ध ज्ञान की धाराओं और मानसिक क्रियाकलाप से है ईडा शक्ति का आंतरिक रूप है
२ पिंगला :- पिंगला का सम्बन्ध शारीरिक क्रियाओं से है पिंगला शक्ति का बाहरी रूप है
३ सुषुम्ना :- सुषुम्ना का सम्बन्ध शारीरिक क्रिया से तो है पर यह अध्यात्म शक्ति का बाहरी रूप है
प्राणप्रेक्षा :- प्राण शक्ति को प्रबल करने के लिए प्राण प्रेक्षा बहुत जरूरी है
प्राण घटक रंग समय
प्राण ह्रदय गुलाबी ३ मिनट
अपान गुदा पीला ५ मिनट
समान नाभि लाल ५ मिनट
उदान कंठ नीला ५ मिनट
व्यान पूरा शरीर श्वेत ५ मिनट
२ एकाग्रता :- दीर्ध श्वास मन की एकाग्रता के लिए आवश्यक है श्वास दुगुना या चौगुना करने पर दिमाग को आराम मिलता है इस अभ्यास से दिमागी तरंगों को महसूस किया जाता है इससे शरीर के अंग और प्रणालियाँ भी प्रभावित होती है
३ शरीर प्रेक्षा :- शरीर प्रेक्षा में हम शरीर को मन की आँखों से देखते है मन को शरीर के प्रत्येक भाग पर ले जाते है उस भाग में होने वाली क्रिया का सजीव अनुभव करते है यह खुली आँखों से नहीं केवल बंद आँखों से चित्त द्वारा होता है शरीर के प्रत्येक भाग में एक मिनट तक मन को केन्द्रित किया जाता है और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पन का अनुभव किया जाता है
पेट की भीतरी प्रेक्षा अर्थात मन संचरण पहले दोनों गुर्दे , बड़ी आँत, छोटी आँत , अग्नाशय (पेनक्रियाज), पक्वाशय (diyodinam ), अमाशय(stomac), तिल्ली(spleen ),यकृत(lever ), तनुपट (डायफ्राम) इस तरह सभी भागों में होने वाली क्रियाओं का मन से अनुभव करते हुए शरीर के पूरे भाग की यात्रा करे
चैतन्य प्रेक्षा :- शरीर के सोये हुए भागो में चेतना जागृत करने के लिए चैतन्य प्रेक्षा सहायक प्रक्रिया है
शक्तिकेंद्र :- मन को शक्ति केंद्र पीठ के मेरुरज्जु के नीचे केन्द्रित करो वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान करो
तेजस केंद्र :- मन को नाभि पर केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
आनंद्केंद्र :- मन को आनंद्केंद्र अर्थात ह्रदय के पास केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो साथ ही यहाँ पर श्वास संयम का प्रयोग करो
विशुद्धि केंद्र :- मन को गले के मध्य भाग पर केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
ब्रह्म केंद्र :- मन को जीभ के अग्र भाग पर केन्द्रित करो जीभ अधर में ही रहे ,आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
प्राण केंद्र :- मन को प्राण केंद्र अर्थात नाक के अग्र भाग पर केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
दर्शन केंद्र :- मन को दोनों आँखों और भृकुटियों के बीच केन्द्रित करो आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
ज्योति केंद्र :- मन को ललाट अर्थात माथे के मध्य भाग पर केन्द्रित करो आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
शांति केंद्र :- मन को सिर के अग्र भाग पर केन्द्रित करो जैसे दीये के प्रकाश की तरह आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
ज्ञान केंद्र :- मन को सिर के ऊपरी दिमाग अर्थात छोटी पर केन्द्रित करो मन को सिर के अग्र भाग पर केन्द्रित करो जैसे दीये के प्रकाश की तरह आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
४ अनुप्रेक्षा :- अनुप्रेक्षा आदतों को बदलने की एक खास प्रयोग विधि है , यह केवल आत्मचिंतन द्वारा संभव है पवित्र भावना के द्वारा शरीर में अमृत तुल्य रसायन पैदा करते है जो काल्पनिक प्रतिबिम्बों द्वारा शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करते है
५ संकल्पशक्ति :- संकल्पशक्ति का प्रयोग अनुप्रेक्षा का एक अंग है इसके द्वारा अनेक कार्यों की सिद्धि की जा सकती है , तेजस केंद्र पर ध्यान कर जो संकल्प किया जाता है वह शीघ्र सफल होता है
६ ध्वनि प्रकम्पन :- ध्वनि प्रकम्पन भावनाओं के साथ मिलकर विकार को बाहर निकल देते है और प्रतिरोधक क्षमता को और प्रबल बनाते है
७ कायोत्सर्ग :- कायोत्सर्ग शरीर के शिथलीकरण और ममत्व के विसर्जन का प्रयोग है शिथलीकरण से शरीर प्रभावित होता है और शरीर मन की आज्ञा का पालन करता है तनावमुक्त करता है इसमें आँखे बंद और श्वास मंद करे , मेरुदंड और गर्दन को सीधा रखे ,अकड़न बिलकुल न हो , मांसपेशियों को ढीला छोडो , शरीर के प्रत्येक भाग में रुई की तरह हल्कापन महसूस करो प्रत्येक भाग को शिथिल करे और मन को पैर से सिर तक पूरे भाग में पूरी एकाग्रता से चित्त की यात्रा करो
१ ध्यान में श्वास धीमा हो जाता है और श्वास को मंद करे तो ध्यान बन जाता है
२ श्वास एक प्राणशक्ति है प्राणशक्ति चेतना से जुडी है इसलिए श्वास को देखने का अर्थ है श्वास के साथ जुडी प्राणधारा की आधारभूत चेतना का अनुभव करना
३ श्वास को देखने से 'मैं कौन हूँ' यह उलझा हुआ प्रश्न सुलझ जाता है इसके लम्बे अभ्यास से प्राण और चेतना का स्पष्ट अनुभव हो जाता है
४ वास्तव में दीर्ध श्वास ही सहज श्वास है पेट का फूलना और सिकुड़ना ही सहज श्वास है
प्राण उर्जा का सम्यक प्रयोग :- प्राण सूक्ष्म शरीर के बीच का सम्बन्ध सूत्र है प्राण शरीर में पाँच प्रकार से नियत समय पर प्राण धारा का प्रवाह करते है
प्राण प्राण केंद्र प्राण - सम्बन्ध प्राण की स्थिति
प्राण नासाग्र,ह्रदय सूर्य सुबह ३ से ५ ..फेफड़े में
दोप: ११ से १ ..हृदय में
सायं ७ से ९ ..हृदय झिल्ली
अपान गुदा अग्नि सुबह ५ से ७ ..बड़ी आँत
दोप: १ से ५ ..छोटी आँत
रात ११ से १ ..मूत्राशय में
रात १ से ३ ...यकृत में
समान नाभि जल सुबह ५ से ११ ..पेट,तिल्ली,
अग्नाशय
सायं ५ से ७ ..गुर्दा में
रात ८ से ११ ..उत्सर्जन तंत्र
उदान कंठ,ओठ वायु सुबह ३ से ५ ..फेफड़े में
दोप:११ से १ ..ह्रदय में
व्यान त्वचा चंद्रमा रात ९ से ११ ..श्वसन तंत्र में
पाचन और उत्सर्जन तंत्र में
प्राण का सम्बन्ध सूर्य से है , नेत्र में प्राण की अधिक मात्रा से है
अपान का सम्बन्ध अग्नि से है,वाणी में अपान अधिक मात्रा से है
समान का सम्बन्ध जल से है ,मन में समान अधिक मात्रा से है
उदान का सम्बन्ध वायु से है ,ओज में उदान अधिक मात्रा से है
व्यान का सम्बन्ध चंद्रमा से है,कान में व्यान अधिक मात्रा से है
प्राण के प्रवाह :- प्राण के मुख्य तीन प्रवाह है
१ ईडा :- ईडा का सम्बन्ध ज्ञान की धाराओं और मानसिक क्रियाकलाप से है ईडा शक्ति का आंतरिक रूप है
२ पिंगला :- पिंगला का सम्बन्ध शारीरिक क्रियाओं से है पिंगला शक्ति का बाहरी रूप है
३ सुषुम्ना :- सुषुम्ना का सम्बन्ध शारीरिक क्रिया से तो है पर यह अध्यात्म शक्ति का बाहरी रूप है
प्राणप्रेक्षा :- प्राण शक्ति को प्रबल करने के लिए प्राण प्रेक्षा बहुत जरूरी है
प्राण घटक रंग समय
प्राण ह्रदय गुलाबी ३ मिनट
अपान गुदा पीला ५ मिनट
समान नाभि लाल ५ मिनट
उदान कंठ नीला ५ मिनट
व्यान पूरा शरीर श्वेत ५ मिनट
२ एकाग्रता :- दीर्ध श्वास मन की एकाग्रता के लिए आवश्यक है श्वास दुगुना या चौगुना करने पर दिमाग को आराम मिलता है इस अभ्यास से दिमागी तरंगों को महसूस किया जाता है इससे शरीर के अंग और प्रणालियाँ भी प्रभावित होती है
३ शरीर प्रेक्षा :- शरीर प्रेक्षा में हम शरीर को मन की आँखों से देखते है मन को शरीर के प्रत्येक भाग पर ले जाते है उस भाग में होने वाली क्रिया का सजीव अनुभव करते है यह खुली आँखों से नहीं केवल बंद आँखों से चित्त द्वारा होता है शरीर के प्रत्येक भाग में एक मिनट तक मन को केन्द्रित किया जाता है और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पन का अनुभव किया जाता है
पेट की भीतरी प्रेक्षा अर्थात मन संचरण पहले दोनों गुर्दे , बड़ी आँत, छोटी आँत , अग्नाशय (पेनक्रियाज), पक्वाशय (diyodinam ), अमाशय(stomac), तिल्ली(spleen ),यकृत(lever ), तनुपट (डायफ्राम) इस तरह सभी भागों में होने वाली क्रियाओं का मन से अनुभव करते हुए शरीर के पूरे भाग की यात्रा करे
चैतन्य प्रेक्षा :- शरीर के सोये हुए भागो में चेतना जागृत करने के लिए चैतन्य प्रेक्षा सहायक प्रक्रिया है
शक्तिकेंद्र :- मन को शक्ति केंद्र पीठ के मेरुरज्जु के नीचे केन्द्रित करो वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान करो
तेजस केंद्र :- मन को नाभि पर केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
आनंद्केंद्र :- मन को आनंद्केंद्र अर्थात ह्रदय के पास केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो साथ ही यहाँ पर श्वास संयम का प्रयोग करो
विशुद्धि केंद्र :- मन को गले के मध्य भाग पर केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
ब्रह्म केंद्र :- मन को जीभ के अग्र भाग पर केन्द्रित करो जीभ अधर में ही रहे ,आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
प्राण केंद्र :- मन को प्राण केंद्र अर्थात नाक के अग्र भाग पर केन्द्रित करो आगे से पीछे सुषुम्ना तक मन के प्रकाश को सीधा फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
दर्शन केंद्र :- मन को दोनों आँखों और भृकुटियों के बीच केन्द्रित करो आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
ज्योति केंद्र :- मन को ललाट अर्थात माथे के मध्य भाग पर केन्द्रित करो आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
शांति केंद्र :- मन को सिर के अग्र भाग पर केन्द्रित करो जैसे दीये के प्रकाश की तरह आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
ज्ञान केंद्र :- मन को सिर के ऊपरी दिमाग अर्थात छोटी पर केन्द्रित करो मन को सिर के अग्र भाग पर केन्द्रित करो जैसे दीये के प्रकाश की तरह आगे से पीछे मस्तिष्क के पीछे की दीवार तक मन के प्रकाश को फैलाये और वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनो का ध्यान से अनुभव करो
४ अनुप्रेक्षा :- अनुप्रेक्षा आदतों को बदलने की एक खास प्रयोग विधि है , यह केवल आत्मचिंतन द्वारा संभव है पवित्र भावना के द्वारा शरीर में अमृत तुल्य रसायन पैदा करते है जो काल्पनिक प्रतिबिम्बों द्वारा शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करते है
५ संकल्पशक्ति :- संकल्पशक्ति का प्रयोग अनुप्रेक्षा का एक अंग है इसके द्वारा अनेक कार्यों की सिद्धि की जा सकती है , तेजस केंद्र पर ध्यान कर जो संकल्प किया जाता है वह शीघ्र सफल होता है
६ ध्वनि प्रकम्पन :- ध्वनि प्रकम्पन भावनाओं के साथ मिलकर विकार को बाहर निकल देते है और प्रतिरोधक क्षमता को और प्रबल बनाते है
७ कायोत्सर्ग :- कायोत्सर्ग शरीर के शिथलीकरण और ममत्व के विसर्जन का प्रयोग है शिथलीकरण से शरीर प्रभावित होता है और शरीर मन की आज्ञा का पालन करता है तनावमुक्त करता है इसमें आँखे बंद और श्वास मंद करे , मेरुदंड और गर्दन को सीधा रखे ,अकड़न बिलकुल न हो , मांसपेशियों को ढीला छोडो , शरीर के प्रत्येक भाग में रुई की तरह हल्कापन महसूस करो प्रत्येक भाग को शिथिल करे और मन को पैर से सिर तक पूरे भाग में पूरी एकाग्रता से चित्त की यात्रा करो
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