Thursday, November 24, 2011

आत्मदर्शन

मनुष्य केवल मात्र अखिलेश्वर परमपिता परमात्मा के स्वरुप की प्रति है जीवात्मा कर्मानुसार समस्त योनियों को भोगता हुआ  मानव  देह को  प्राप्त  करता है  यद्यपि  जीवन  के  क्रम  में मानव जीवन जीने का अवसर एक  बार  ही  मिलता  है  लेकिन  मनुष्य  जीवन  पाकर  अगर  मानव  सदाचार  से  जीवन यापन  करते  हुए  निस्वार्थ  भाव  से  जीवकल्याण  को  समर्पित  रहता  है  तो  वह  निश्चय  ही  अगले  जनम में मनुष्य योनि को प्राप्त होता है  क्योकि  उसकी  कर्मगति  उर्ध्व  अर्थात  ऊपर की ओर जाती है और  उर्ध्व  गति  की  ओर  जाने  वाली  उर्जारुपी  आत्मा कर्मानुसार सर्वोपरि महलोक , स्व लोक  भुव लोक और भू लोक को प्राप्त होती है
महलोक   जहाँ परमेश्वर का स्वयं निज निवास है 
स्वलोक   अर्थात स्वर्गलोक जहाँ देवताओं का निवास है 
भुवलोक  जहाँ  अनन्य भक्तगणों  का निवास है
भूलोक    जहाँ  समस्त पितरों का निवास है  इन लोकों में केवल उन्ही जीवात्माओं अगले जनम की प्राप्ति होती है जो अपने पिछले जनम में विकारों से मुक्त होकर परमेश्वर की अनन्य भक्ति करते हुए परमार्थ और जीवकल्याण के लिए जीते हैं 
जो जीवात्माएं  विकारों अर्थात काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ में फंसे  रहते है तथा स्वार्थी बनकर ईश्वर को नकार कर जीवन यापन करते है ऐसी जीवात्माएं  अधोगति अर्थात नीच योनि को प्राप्त होती है और सदा इस मृत्युलोक में ही पशु, पक्षी और कीट-पतंगों का जीवन जीने को मजबूर रहती है 
इसलिए मनुष्य को विकारों अर्थात काम,क्रोध,मद,मोह और लोभ जो  पैदा करती है और अधोगति कर्म करने को बाध्य करती है से स्वयं नकाराक्त्मक उर्जा को मुक्त करके अपनी कर्मगति को उर्ध्व की ओर प्रेरित करना चाहिए अर्थात क्षमा , दया , तप ,त्याग और भक्ति भाव जो सकारात्मक उर्जा पैदा करते हैं जिससे जीवात्मा को परमात्मा की दिव्यज्योति का दर्शन होते है और परमात्मा से आत्मसाक्षात्कार कराती है अपने जीवन को और अपना तन,मन और धन निःस्वार्थ भक्ति भाव से जीवकल्याण सेवा के लिए समर्पित कर देना चाहिए  क्योंकि मानव  परमात्मा स्वरुप की एकमात्र प्रतिरूप है और परमात्मा का लक्ष्य सदैव जीवकल्याण होता है ....आओ हम पहले स्वयं को जाने , पहचाने हम क्या वाकई परमात्मा के प्रतिरूप है  कैसे?
सर्वप्रथम अपनी आँखों को बंद करके , शरीर और मन को मुक्त अवस्था में लाकर ध्यानमुद्रा में बैठकर चिंतन करे फिर मनन करे और अंत में मंथन करे.
१  क्या आप आँख है?     उत्तर   .... नहीं 
२  क्या आप नाक है?      उत्तर   .... नहीं 
३  क्या आप हाथ है?      उत्तर   .... नहीं 
४  क्या आप कान है?      उत्तर   .... नहीं 
५  क्या आप मुहं  है?      उत्तर   .... नहीं 
६  क्या आप सिर है?       उत्तर   .... नहीं 
७  क्या आप पैर है?        उत्तर   .... नहीं 
८  क्या आप शरीर के अन्दर का ह्रदय है?                    उत्तर   .... नहीं 
९ क्या आप शरीर के अन्दर का रक्त है?                      उत्तर   .... नहीं 
१० क्या आप शरीर के अन्दर का उदर अर्थात पेट है?       उत्तर   .... नहीं 
११  क्या आप मस्तिष्क है? उत्तर   .... नहीं 
१२ क्या आप यह शरीर है?  उत्तर   .... नहीं 
१३  क्या आप शब्द है?      उत्तर   .... नहीं 
१४  क्या आप घर है?        उत्तर   .... नहीं 
जब आप शरीर का कोई अंग नहीं है तो आप शरीर भी नहीं हो सकते
जब आप इनमें से कोई नहीं है तो आप है कौन?
जब आप इनमें से हो नहीं सकते तो आप न तो नर है , न नारी है 
तो फिर आप हिन्दू , मुस्लिम, सिख , इसाई  भी  नहीं  हो सकते 
यह शरीर तो घर की तरह है और ह्रदय में स्थित मन जीवात्मा का निवास है ठीक उसी तरह जैसे रोज मनुष्य रोजी रोटी कमाने घर से बाहर जाते हैं और शाम को वापस अपने निवास स्थान पर आ जाते है 
जीवात्मा भी सोने के दौरान शरीर से निकलकर विचरण करती है और जैसे ही आँख खुलती है अर्थात भाव आते है जीवात्मा फिर से शरीर में प्रवेश कर लेती है 
अब जानने का विषय यह है कि समस्त जीवों के अंदर विद्यमान आत्मा   कौन है ? जीवात्मा का परमात्मा से कैसे सम्बन्ध हुआ?  इस सूक्षम ज्ञान को जानने के लिए प्राणी को अर्थात मनुष्य को चिंतन करना होगा  जैसे एक पिता का अपने बच्चों में केवलमात्र एक शुक्राणु से सम्बन्ध बना जबकि सहवास के दौरान हजारों शुक्राणु का प्रवाह होता है  मनुष्य के शरीर में विद्यमान शुक्राणुओं की तुलना में एक शुक्राणु का सम्बन्ध अनुपात बहुत सूक्षम है  और यह सम्बन्ध ठीक और सटीक उसी तरह बैठता है जैसे उर्जारुपी शक्ति जीवात्मा जो अति सूक्षम अंश अनुपात है परमब्रह्म परमात्मा ओउमकार की अखिल अनंत असीम शक्ति के सामने. इस तरह मनुष्य की जीवात्मा का सम्बन्ध सीधे सीधे परमात्मा से हुआ. तो मनुष्य परमात्मा के स्वरूप की प्रति ही तो हुआ... हर मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कि मानव जनम परमात्मा का आशीर्वाद है जिस तरह हर माता-पिता को अपनी औलाद से उम्मीद करते है कि उनके बच्चे अच्छे पढ़े लिखे और नेक इन्सान बने और उत्कृष्ट कार्य करके संसार में माता-पिता का नाम रोशन करे.  यही उम्मीद अखिलेश्वर परमपिता परमात्मा भी सभी जीवात्माओं से करता है कि मनुष्य स्वयं को सभी विकारों से मुक्त करके अपने जीवन में असीम भक्ति भाव पैदा करके जीवन को जीव कल्याण के लिए समर्पित कर दे. ऐसा करने से जीवात्मा को परमात्मा की असीम शक्तियां मिलने लगेगी ताकि परमात्मा शक्तियों के माध्यम से जीवात्मा से सीधे सम्बन्ध स्थापित कर चमत्कार करके संसार में अपने होने का अहसास दिलाता है और दिखाता है ..जो जीवात्मा परमात्मा की कसौटी पर खरी उतरती है परमात्मा उस जीवात्मा को अपनी दिव्य शक्ति प्रदान करता है और उसी जीवात्मा के द्वारा चमत्कार करता है तथा उस जीवात्मा को अपनी तरह देवतुल्य बनाकर सदैव के लिए पूजनीय बना देता है और उसे मोक्ष प्रदान कर अपने धाम भुवलोक  में दूत से अलंकृत कर आश्रय देता है तथा अपना संदेशवाहक दूत बनाकर अपने ईश्वरीय धर्म जीव कल्याण के प्रसार और अनुपालन के लिए महात्मा बुद्ध,महावीर जैन, सत्य सांई, गुरु नानक , मोहम्मद और लार्ड ईसा के रूप में मृत्युलोक में भेजता रहता है ..परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए मनुष्य को पानी की तरह पारदर्शी , सोने की तरह खरा बनने के लिए जप तप ,ध्यान और  योग विद्या का विधिवत अनुसरण करना होगा जिसके लिए उसे  आध्यात्मिक गुरु की शरण में जाना चाहिए न कि धार्मिक गुरु की शरण में. आध्यात्मिक गुरु गुणों की खान होता है जैसे 
धृति,क्षमा ,दमोस्तेयं, शोचिमिन्द्रिय निग्रह 
धी विद्या सत्यम  अक्रोधो  दशकं धर्मं लक्षणं 
सरलार्थ :- धैर्य रखना, क्षमा करना, संयम रखना,चोरी न करना, शरीर और मन को साफ रखना , इन्द्रियों को वश में रखना, बिना सोचे-समझे कोई काम न करना अर्थात बुद्धि से काम लेना, विद्या ग्रहण करना, सच बोलना और क्रोध न करना ये दस धर्म के मूल लक्षण हैं  इन लक्षणों से जो गुणवान होता है वही दिव्य गुणों को प्राप्त करने का श्रेष्ठ अधिकारी होता है तथा समस्त जीवों के भावों को जान सकता है और भक्ति भाव से पैदा करके परमात्मा के दर्शन कराने का एकमात्र माध्यम है ..इसलिए तो अध्यात्मिक गुरु को भगवान से भी बड़ा माना गया है  और कहा गया है :-
गुरु  गोविन्द  दोउ  खड़े ,  काके  लागू  पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो मिलाय ...
गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु  देवो  महेश्वर
गुरु साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः   ...
इस श्लोक में गुरु को ब्रह्मा,विष्णु और महेश जिन्हें संसार का भगवान माना जाता है से भी श्रेष्ठ अर्थात परमब्रह्म से अलंकृत किया गया है ..अब सभी मनुष्यों को यह जान लेना चाहिए कि हमें यह मनुष्य जीवन  परमेश्वर के विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए मिला है और पूरा करने के लिए सदैव तत्पर रहे .इसलिए मनुष्य अन्य जीवों से उत्कृष्ट और अलग है..

2 comments:

  1. बड़ा अच्छा लिखा है। बस एक त्रुटि सी है। मोक्ष के पश्चात् किसी लोक में शरण नहीं दी जाती क्योंकि आवश्यकता नहीं रहती। मोक्ष का तात्पर्य ही है कि स्वयं की आत्मा को पूर्णरूपेण सत्वगुण से इतना धो लेना कि वो आत्मा परमात्मा से एक हो जाए। परमात्मा एक है और वही जीवात्मारूप से अलग अलग जीवों में उनके द्वारा किये गए अलग अलग कर्मानुसार और सत्वगुण तमोगुण व रजोगुण के आनुपातिक प्रभाव से लिप्त होकर निवास करते हैं। जिस दिन मनुष्य गुणातीत हो गया वो जीवित अवस्था में ही मुक्त अर्थात् स्थितप्रज्ञ हो गया।

    ReplyDelete
  2. blog ko padhne ka aur sujhaav ke liye aapka dhanywad,

    ReplyDelete