Tuesday, November 15, 2011

ऊर्जा विज्ञान और अध्यात्मिक ज्ञान


ऊर्जा विज्ञान और अध्यात्मिक ज्ञान 

        पृथ्वी के सभी स्थलीय , जलीय , उष्मीय और वायु जीवों का निर्माण या उत्पत्ति पंच महातत्व पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश से हुआ है इसका प्रमाण हाथों में पांच उँगलियों का होना है जो हम जीवों को पांच महा विकारों काम, क्रोध, मद , मोह और लोभ पर विजय पाकर पांच दिव्य शक्ति  क्षमा, दया, तप, त्याग और निश्छल प्रेम को अपनाने को प्रेरित करती है 
        आत्मा आकाशीय तत्व है मृत्यु उपरांत आकाश में विलीन हो जाती है , सांस वायु में , खून वाष्प बनकर पानी में , शरीर मिटटी बनकर पृथ्वी में और शरीर का तेज अग्नि में विलीन हो जाता है , इस तरह शरीर के पाँचों तत्व पांच महातत्व में मिलकर प्रमाणित करते है कि जीवों की उत्त्पत्ति पांच महातत्व से ही हुई है इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए 
        अब सवाल केवल आत्मा और परमात्मा का है , आत्मा क्या है ? , कैसे बनी? और शरीर में कहाँ निवास करती है? इन प्रश्नों ने अध्यात्मिक ज्ञानी और विज्ञानी दोनों को चुनौती दे रखी है   विज्ञान के आधुनिक नवीन मशीनों और प्रयोगों ने मानव शरीर के एक एक अंग को खंगाल दिया , लेकिन आजतक भी जान नहीं सके कि जीवात्मा शरीर के किस अंग में विद्यमान है 
परमात्मा :- आओ इस सत्य को जानने की कोशिश करे  सबसे पहले हम मंथन करे कि इस सृष्टि को चलाने वाली कोई तो दिव्यशक्ति है , ब्रह्माण्ड में इतने विशाल ग्रह , उपग्रह चक्कर लगा रहे है विज्ञान के मायने में यह सब सूर्य की गुरुत्व आकर्षण शक्ति के कारण हो रहा है , अब सवाल यह है कि सूर्य को भी तो किसी ने बनाया ही होगा , सूर्य में गुरुत्व आकर्षण शक्ति का एकमात्र कारण भी तो ऊर्जा ही है , जब सूर्य में इतनी ऊर्जा है तो उस परमशक्ति में कितनी ऊर्जा होगी , उसकी शक्ति का अनुमान लगाना भी मुश्किल है  इसलिए मान लिया जाये कि यह ब्रह्माण्ड परमात्मशक्ति से ही विद्यमान है और परमात्मा ने अपनी शक्ति को ब्रह्माण्ड के सभी चर , अचर जीवों में विभाजित कर रखा है हम उस परमात्मशक्ति को साकार और निराकार रूप में पूजते है , ऐसा मानते है और आस्थागत है 
आत्मा :- आत्मा परमात्मा की ऊर्जा की सबसे छोटी इकाई है जिसका माप और नाप संभव नहीं ,  विज्ञान ने साबित किया है कि ऊर्जा का मात्रक शक्ति है , पृथ्वी से पैदा सभी जीव-पदार्थ ऊर्जा के स्रोत है अर्थात शक्ति के साधन है , आधुनिक विज्ञान ने बिजली का अविष्कार किया है , बिजली आज हमारे सुख-साधन और दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है , बिजली के बिना सभी आधुनिक यंत्र बेकार है क्योंकि विद्युत् ऊर्जा ही उनका प्राण है , बल्ब, मोटर, पंखे, कंप्यूटर ,एयर कंडीशन , टी वी, मोबाइल यहाँ तक कि रॉकेट यान और सैटलाइट सभी यंत्र विद्युत् ऊर्जा से चलते है लेकिन विद्युत् ऊर्जा के प्रवाह को कभी देखा नहीं जा सकता यद्यपि ऊर्जा की चमक को देखा गया चाहे वह विद्युत् ऊर्जा हो या आकाशीय ऊर्जा 
      जिस तरह बल्ब के जलने का प्रभाव दिखता है लेकिन बिजली के तारो में ऊर्जा के प्रवाह को देखा नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है उसी तरह शरीर में विद्यमान ऊर्जा जो परमात्मशक्ति की इकाई है सूर्य से विछिन्न होकर पृथ्वी के माध्यम से भोज्य पदार्थो के रूप में सभी जीव ग्रहण करते रहते है जो शुक्राणु के रूप में शरीर में एकत्रित होती है जिसे पञ्च महातत्व नियंत्रित करते है 
आत्मा का निवास :- ऊर्जा ही आत्मा है , ताकत है , जीवन है , जब तक शरीर में आत्मा है तब तक शरीर में नियत तापमान रहता है लेकिन मरने  पर देखा गया है कि आत्मा के निकलते ही शरीर निर्जीव और ठंडा होकर अकड़ जाता है   ऊर्जा का मतलब उर + जाँ  अर्थात उर का अर्थ ह्रदय और जाँ का अर्थ जान    मतलब बिलकुल साफ है ह्रदय में जो जान है वह ऊर्जा रुपी परमात्मा का अंश है 
विज्ञान और अध्यात्म :- विज्ञान और अध्यात्म सिक्के के दो पहलू है मानव निर्मित सभी आधुनिक यंत्र ऊर्जा के प्रवाह से ही चलते है जैसे फ्रिज और एयर कंडीशन कम्प्रेस्सर से चलते है कम्प्रेस्सर फ्रिज और एयर कंडीशन का ह्रदय है अगर कम्प्रेस्सर काम करना बंद कर दे तो दोनों यंत्र बेकार है उसी तरह सभी जीवो में ह्रदय ही कम्प्रेस्सर की तरह काम करते है  और ह्रदय और कोम्प्रेस्सर दोनों ही ऊर्जा से चलते है 
कितना सटीक है कुदरत और कुदरत निर्मित मानव का आधुनिक सिद्धांत अब कोई शक की गुंजाईश नहीं होनी चाहिए   आत्मा परमात्मा का अंश है और ह्रदय में निवास करती है और मानव ही परमपिता परमात्मा की सर्वश्रेष्ट कृति है  इसलिए मानव को नियंत्रक बनना चाहिए क्योंकि नियंता तो स्वयं ईश्वर है 
नियंत्रक बनने का तात्पर्य यह नहीं कि मानव निरीह ,असहाय और दुर्बल जीवों पर अपनी ताकत , अहंकार और धन से अनैतिक अधिकार जताए बल्कि उसे स्वयं के विकारों अर्थात काम ,क्रोध, मद, मोह और लोभ पर नियंत्रण पाकर परमार्थ जीवन का निर्वाह करते हुए ईश्वर के दूत बनकर परमात्मा के उद्देश्य को पूरा करे ताकि उसे परमात्मा सानिद्ध्य प्राप्त हो 

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